अनिल जायसवाल
पांच साल
का था उदयन। बड़ा हंसमुख और चुलबुला। पर उसके
चुलबुलेपन को आजकल नजर लग गई थी। भई, उसे मम्मी-पापा ने एक स्कूल में दाखिला जो दिला दिया
था। वहां तो पहले वह दिन में दादू को, तो रात में पापा को
घोड़ा बनाकर सवारी करता
रहता था और कहां अब एक ठसाठस
भरी स्कूल वैन में बैठकर वह स्कूल जाता, जहां पचास बच्चों के बीच उसे पढऩा पड़ता था।
पर उसे स्कूल में एक चीज
अच्छी लगती थी। वहां हर दूसरे दिन किसी न किसी बच्चे का जन्मदिन होता था। वह
बच्चा अपनी क्लास के बच्चों के
साथ-साथ औरों के लिए भी टॉफियां लेकर
आता। टॉफी खाते-खाते उदयन को याद आता कि
कैसे उसके
जन्मदिन पर मम्मी अच्छी सी पार्टी देती हैं। पर उसे पार्टी से क्या मतलब? वह तो बस अपने गिफ्ट्स गिनता। पर महीने-दो
महीने में ही गिफ्ट्स पुराने हो जाते। वह फिर अगले जन्मदिन का इंतजार
करने लगता।
एकदिन वह मम्मी से पूछ बैठा, मम्मी, क्या मेरा बर्थडे साल में दो बार नहीं आ सकता?
मम्मी ने प्यार से उसे गले से चिपका लिया।
फिर बोलीं, बुद्धू, जब भगवान ने तुम्हें एक खास
दिन मुझे गिफ्ट किया, तो कोई और दिन आपका बर्थडे
कैसे बन सकता
है?
उदयन ठुनक गया, बताओ न मम्मी। मैं साल में दो बार अपना बर्थडे
मनाना चाहता हूं। क्या करूं कि
ऐसा हो सके।
मम्मी क्या कहतीं? उसे प्यार करके
बहलाती रहीं। पर उदयन के तो दिमाग में ही दूसरे बर्थडे की
बात बैठ गई थी।
चित्र ः सुदर्शन मल्लिक, साभार नंदन पत्रिका, दिल्ली
उसे रास्ता दिखाया उसकी
क्लासमेट नेहा ने। उसने भेद खोला, मेरी मम्मी मुझे हॉस्पिटल से लाई थीं। तुम कहां
से अपनी मम्मी के पास आए थे? यह पता करो।
यह पता चलने पर कुछ हो सकता
है।
उस दिन स्कूल में उदयन के
लिए तो समय काटना मुश्किल
हो गया। छुट्टी हुई, तो घर पहुंचते ही सबसे पहले वह मम्मी के
पास पहुंचा और पूछ बैठा, मम्मी, आप मुझे कहां से लाई थीं?
मम्मी हैरान हो गईं, कहां
से लाई थी? क्या
मतलब?
उदयन को चैन
कहां था। उसने अगला सवाल दाग दिया, क्या आप भी मुझे हॉस्पिटल से लाई थीं?
अब मम्मी की
समझ में सवाल का मतलब आया। उन्होंने हंसते हुए कहा, हां बेटा, लाई तो वहीं से थी।
उदयन को मंजिल
दिखाई देने लगी। वह बोला, मैं अपनी उस डॉक्टर आंटी से मिलना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे वहां आपको गिफ्ट
किया था।
उदयन के
बोलने में ऐसा आग्रह था कि मम्मी मुसकराकर
बोलीं,
ठीक है।
मैं कल तुम्हें ले चलूंगी।
अब तो उदयन को चैन
नहीं था। अब कल तक का इंतजार
कैसे हो? वहां डॉक्टर आंटी से क्या पूछेगा, यह उसकी
समझ में नहीं आ रहा था। फिर उसे याद आया कि
मैम ने बोला था, किसी से मिलने जाते समय कार्ड बनाकर
ले जाने पर लोग बच्चों से बहुत खुश होते हैं। वह बैठ गया डॉक्टर आंटी के
लिए कार्ड बनाने। अपने नन्हे हाथों से टेढ़ा-मेढ़ा कार्ड बनाया। फिर उस पर
लिखा—टू, डॉक्टर। फ्रॉम, योर गिफ्ट।
अगले दिन शाम को मम्मी
ने कार निकाली
और अपने नन्हे उदयन को लेकर
डॉक्टर के यहां चल पड़ीं। उदयन ने चुपचाप अपना कार्ड
रख लिया था। मम्मी को भी उसने यह राज नहीं बताया।
हॉस्पिटल पहुंचकर
मम्मी ने डॉक्टर को संदेश भिजवाया। वह तो उनको जानती
थीं। केबिन में उदयन के
साथ पहुंचकर मम्मी ने डॉक्टर मैम को अपने
आने का कारण बताया फिर उदयन से बोलीं, लो, देख लो। यही डॉक्टर आंटी हैं जिन्होंने तुम्हें गिफ्ट
किया था।
उदयन ने शर्माते हुए अपना कार्ड निकाला
और डॉक्टर आंटी कार्ड तरफ बढ़ा दिया। उन्होंने प्यार से कार्ड ले लिया। फिर जब पढ़ा, 'फ्रॉम
योर गिफ्ट' तो
उनकी हंसी रोके
न रुकी। वह उसके
सिर पर हाथ फेरकर बोलीं, वाह, तुम्हारा गिफ्ट तो मुझे बहुत प्यारा लगा।
डॉक्टर आंटी को हंसते
देखकर उदयन का डर
कुछ कम हुआ और उसे अपना काम
बनता नजर आने लगा।
हां बेटा, अब बताओ, क्यों मिलना था तुम्हें अपनी डॉक्टर आंटी से? डॉक्टर
आंटी ने उदयन को याद दिलाया।
आपको गिफ्ट
अच्छा लगा? उदयन ने डरते-डरते पूछा।
बहुत अच्छा है बेटा। अब तो मुझे भी एक गिफ्ट
देना पड़ेगा।
गिफ्ट! सुनते ही उदयन की आंखें चमक उठीं।
उसने पूछा, आप
सचमुच मुझे गिफ्ट देंगी?
हां-हां क्यों नहीं। बताओ, आपको क्या
गिफ्ट चाहिए? डॉक्टर आंटी मुसकराती
हुई बोलीं।
आंटी, आप एक बार फिर से मुझे गिफ्ट के
रूप में मेरी मम्मी कोदे दीजिए। आज का दिन
फिर से मेरा बर्थडे हो जाएगा। इस तरह मेरा साल में दो बार बर्थडे आया करेगा। हिम्मत
करके अपने आने का कारण
उदयन ने बता ही दिया।
पहले तो डॉक्टर आंटी की
समझ में बात आई ही नहीं। फिर जब मम्मी जी ने डबल बर्थडे मनाने की
उदयन की
जिद के बारे में बताया, तो दोनों मिलकर
खूब हंसीं। हंसी रुकने पर डॉक्टर आंटी ने उसे गोद में उठाया।
प्यार किया और फिर उसे उसकी
मम्मी की गोद में दे दिया और बोलीं, लीजिए, मिसेज गुप्ता। मैं आपका बेटा
फिर से आज आपको गिफ्ट करती हूं। आज का दिन
भी इसका बर्थडे रहेगा। और सबसे पहले मैं उसे गिफ्ट
दूंगी। डॉक्टर आंटी ने फटाफट टरमीनेटर गेम मंगाकर
उसे गिफ्ट कर दिया।
फिर तो जब उदयन मम्मी के
साथ चला,
खुशी के
मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह तो बस
मन ही मन यह गिनने में लगा था कि एकही
साल के इस दूसरे बर्थडे पर उसे कितने
गिफ्ट्स मिलने वाले हैं।